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 سروش هایی برای تاجیکانСурӯшҳое барои Тоҷикон

(ثبت: 260821) خرداد 20, 1402 
سروش هایی برای تاجیکانСурӯшҳое барои Тоҷикон

Салому дуруд, рӯз ва рӯзгоратон бахайру баркат!
Чанд сурӯш тақдими шумо хубон:

1 –
Бо дилам ҳар чӣ гуфтугӯ кардам/

Дар суханҳош ҷустуҷӯ кардам/

Кор бо ғайри дил шикор надошт.//

2-
Хандаҳоят сафои зиндагӣ аст/

Нафас дилгушои зиндагӣ аст/

Ҳамаи моҷарои зиндагӣ аст/

Дӯстат дорам.//

3-
Дӯст дорам ба шеърҳои худам/

Нақши зебои чеҳраат бикашам/

Ва қасам медиҳам ба ашки қалам/

Ки набинӣ ба ҷуз ба чашми карам/

Ки ман, эй дӯст! Дӯстат дорам.//

4-
Кош! Борон ба доди дил бирасад/

Меҳри тобон ба доди дил бирасад/

Маҳи шитобон ба доди дил бирасад/

Сӯҳбати ҷон ба доди дил бирасад/

Кош! Ҷонон ба доди дил бирасад/

Дод аз ин доғ//

5-
Мисли гулҳои пок бояд буд/

Аз бадӣ шармнок бояд буд/

Ҳаст фардо ҳалокамон лобуд/

Хуфтаву сар ба хок бояд буд/

Фурсати бад шудан чӣ кӯтоҳ аст! //

6-
Нозанин! Меҳрубонтар аз ин бош! /
Беш аз ин ёри қалби ғамгин бош! /
Дилкашу дилбару дилозин бош! /

Дӯстдори туам.//

7-
То маро бо худ ошно кардӣ/

Ошно бо раҳи Худо кардӣ/

Хотирамро гаронбаҳо кардӣ/

Ба ғами жарф, мубтало кардӣ/

Ҷовидон ҳамнишини ҷонам бош! //

Муҳаммад Алӣ Ризопур

سلام و درود، روز و روزگارتان بخیر و برکت!
چند سروش تقدیم شما خوبان:

1-
با دلم هر چه گفتگو کردم/

در سخن هاش جستجو کردم/

کار با غیرِ دلشکار نداشت.//

2-
خنده هایت صفای زندگیَ است/

نفس دلگشای زندگیَ است/

همه ی ماجرای زندگیَ است/

دوستت دارم.//

3-
دوست دارم به شعرهای خودم/

نقش زیبای چهره ات بکشم/

و قسم می دهم به اشک قلم/

که نبینی بجز به چشم کرم/

که من ای دوست! دوستت دارم.//

4-
کاش! باران به داد دل برسد/

مهر تابان به داد دل برسد/

مَه، شتابان به داد دل برسد/

صحبت جان به داد دل برسد/

کاش! جانان به داد دل برسد/

داد از این داغ//

5-
مثل گل های پاک باید بود/

از بدی،شرمناک باید بود/

هست فردا، هلاک مان لابُد/

خُفته و سر به خاک باید بود/

فرصت بد شدن، چه کوتاه است!//

6-
نازنین! مهربان تر از این باش!/

بیش از این، یار قلب غمگین باش!/

دلکش ودلبر و دلاذین باش!/

دوستدار تو ام.//

7-
تا مرا با خود آشنا کردی/

آشنا با رَهِ خدا کردی/

خاطرم را گرانبها کردی/

به غمی ژرف، مبتلا کردی/

جاودان همنشینِ جانم باش!//

 

محمدعلی رضاپور

 

 

 

کاربرانی که این شعر را پسندیده اند (3):

نظرها
  1. محمد حسنی

    خرداد 20, 1402

    درود جناب رضا پور
    بسیار زیبا و دلنشین بودند
    قلمتان رقصان
    در پناه خدا🌷🌷

    • محمدعلی رضاپور

      خرداد 20, 1402

      درودها و سپاس ها یتان جناب حسنی گرامی
      در انتظار سروش های جدیدتان هستیم.
      در پناه خدا بهترین ها نصیب تان 🌷🌷🌷

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سلام و درود
بسیار زیباست
سپاس از حضورتان
لذت بردم
شادکام باشید
در پناه خدا